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कविता

इतवार और तानाशाह

मणि मोहन


आज इतवार है
अपने घर पर होगा तानाशाह
एकदम अकेला...

क्या कर रहा होगा ?
गमलों में लगे
फूलों को डाँट रहा होगा !
हाथों में कैंची लिए
लताओं के पर कतर रहा होगा !
खीझ रहा होगा बीवी पर !
या फिर अपने कुत्तों से
चटवा रहा होगा तलुवे !

क्या आज फिर
टूटा होगा
उसके घर में एक आईना ?
क्या आज फिर चीख-चीख कर
पूछ रहा होगा -
किसने तोड़ा है ये आईना ?

पता नहीं तानाशाह
इस वक्त अपने घर पर
किस तरह
मना रहा होगा इतवार ?
 


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